भारतीय विवाह के प्रकार बहुत सारे हैं। भारत ही ऐसा एकमात्र देश है जहाँ हर धर्म और जाती के लोग व्यक्तिगत सवंत्रता के साथ जीते हैं और इसलिए यहाँ हर धर्म के अंदर अपने – अपने रीति – रिवाज और शादी के अलग तरीके भी होते हैं।
भारतीय विवाह के प्रकार कितने तरह के हैं ये सवाल गाहे बगाहे मन में आ ही जाता हैं। भारत में शादियों के प्रकार अपनी विशाल, बहुराष्ट्रीय आबादी और देश के विभिन्न क्षेत्रों के कारण भिन्न हैं जिसके कारण भारत के हर राज्य में अलग-अलग रीति-रिवाजों के अनुसार अलग-अलग तरीकों से विवाह किए जाते हैं।
भारतीय विवाह के प्रकार हर धर्म और उनके संस्कारों और अनुष्ठानों के अनुरूप हैं । भारत में विवाह की रस्में उनके धर्म और संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग हैं। भारत में अन्य धार्मिक समूह निवास करते हैं और इस प्रकार उनकी शादी की अपनी अपनी शैलियाँ हैं।
भारतीय विवाह के प्रकार कितने हैं जाने आप भी 🙂
दोस्तों आज के इस ब्लॉग में हम जानेंगे की भारतीय शादी कितने प्रकार की होती हैं और उन सभी के बारे में हम विस्तार से जानेंगे। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं जरुरी बातें।
1. हिन्दू धर्म के विवाह का प्रकार |
2. इस्लाम धर्म के विवाह का प्रकार |
3. ईसाई धर्म के शादी का प्रकार |
4. सिख धर्म के विवाह का प्रकार |
5. बौद्ध धर्म की शादी का प्रकार |
6. जैन धर्म की शादी का प्रकार |
7. पारसी धर्म के विवाह का प्रकार |
8. कोर्ट मैरिज जहाँ हर धर्म के लोगो की शादी |
दोस्तों मैंने ऊपर तालिका में आपको बताया भारतीय शादी के प्रकार अब मैं इसे विस्तार में बताती हूँ।
भारतीय विवाह के अंतर्गत हिन्दू धर्म की शादियां
भारत में बहुत सारे धर्म हैं और उनमें से एक धर्म हिन्दू जो की भारत का सबसे बड़ा और मूल धार्मिक समूह है और भारत की 79.8% जनसंख्या (96.8 करोड़) इस धर्म के अनुयायी हैं।
हिन्दू धर्म के अंदर बहुत सारे जाति आते हैं जिनके अपने अपने क्षेत्र के अनुसार विवाह संस्कार होते हैं। तो चलिए डालते हैं उनसभी पर नजर ।
बंगाली विवाह
बंगाली शादी जो भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में होती हैं।
बंगाली शादी अन्य भारतीय शादियों की तरह पारंपरिक रीति-रिवाजों का एक मिश्रण है।
बंगाली शादी रंग और जीवंतता से भरी होती हैं।
बंगालियों का मानना है कि एक शादी न केवल जोड़े के लिए बल्कि पूरे परिवार के लिए एक नई यात्रा की शुरुआत का संकेत देती है।
एक पारंपरिक बंगाली शादी में बहुत सारी दिलचस्प और मजेदार रस्में शामिल होती हैं जो शादी के मायने बताते हैं।
मराठी विवाह
मराठी शादी जो भारत के महाराष्ट्र राज्य में होती हैं।
मराठी शादी को उनके व्यंजन – नाच – गान और आनंद के लिए जाना जाता हैं।
मराठी विवाह को सादगी और अनुष्ठानों के लिए सबसे अच्छे तरह से जाना जाता हैं।
गुजराती विवाह
गुजराती विवाह पूजा और अनुष्ठानों से भरे हुए हैं ।
ये रस्में शादी की शर्तों को पूरा करती हैं और जोड़े को एक अच्छा जीवन जीने में मदद करने के निर्देश देती हैं।
गुजरातियों का ये मानना है कि शादी के बाद पत्नी अपने पति की सद्धर्मचारिणी बन जाती है।
एवं विवाह के साथ जिम्मेदारी तो आती हैं पर उससे अच्छे से निपटने की शक्ति भी आती है।
राजस्थानी विवाह
भारत का सबसे रंगीला राज्य राजस्थान हैं।
रंगीले राजस्थान में वैवाहिक रीति-रिवाजों का रंग-ढंग कुछ निराला है वहाँ ढेर सारी रस्में उत्साहपूर्वक निभाई जाती हैं।
कुछ रस्में विवाह से पहले शुरू हो जाती हैं और विवाह के बाद तक चलती हैं।
विवाह से सम्बंधित रीति-रिवाज अत्यंत प्रतीकात्मक हैं और उनमें कृषि आधारित जीवनप्रणाली के अनेक बिंब देखने को मिलते हैं।
क्योंकि बीते दौर में कृषि ही राजस्थान की आजीविका का मुख्य साधन था।
हरियाणवी विवाह
भारत का राज्य हरियाणा जहाँ के हरियाणवी लोग स्वभाव से ही विनोदी प्रवृत्ति के होते है।
यहां के लोगों की हास्यात्मक प्रवृत्ति का असर उनके लोक-व्यवहार, आचार, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, मान्यताओं एवं संस्कारों में भी देखने को मिलता है।
‘छन्न कुहाई’ हरियाणवी लोकजीवन में विवाह संस्कार परम्परा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
जो उक्त विनोदी प्रवृत्ति को अपने अंदर समेटे हुए है।
पंजाबी विवाह
पंजाब राज्य में होनेवाली पंजाबी शादियों को उत्साह, जीवंतता और निश्चित रूप से भांगड़ा के लिए जाना जाता है।
पंजाबी शादी समारोह एक बहुत जीवंत अभी तक एक सरल कार्य है और यह बहुत ही भड़कीलेपन के साथ आयोजित किया जाता है।
शादी समारोह में कई रस्में होती हैं, जिनका विशिष्ट महत्व होता है।
उतराखंड ( पहाड़ी ) विवाह
हम बात कर रहे हैं भारत के पहाड़ी राज्य उतराखंड की।
इसमें कोई शक नहीं हैं की ये राज्य प्राकृतिक तौर पर कितना सुन्दर और निराला हैं।
अब हम बात करते हैं यहाँ के विवाह संस्कार के बारे में।
इस पहाड़ी राज्य में सामाजिक वर्ण – व्यवस्था के अनुरूप वैवाहिक तरीका प्रचलित हैं।
यहाँ रीति – रिवाज के साथ – साथ की गयी शादी के अलावा बिना शादी किये जोड़े पति और पत्नी के रूप में भी रहते हैं जिसे ढाँटी कहते हैं।
तमिलियन विवाह
भारत के दक्षिण भारत राज्यों में से एक राज्य हैं तमिलनाडु।
तमिलियन या अय्यर दक्षिण भारत के ब्राह्मण हैं।
तमिल शादी को कल्याणम कहते हैं।
यह शादी अन्य हिन्दू शादियों की तरह ही होता हैं।
भारतीय विवाह के अंतर्गत इस्लाम धर्म की शादियां
मुस्लिम विवाह को ‘निकाह’ कहा जाता है।
अवधारणा के स्तर पर मुस्लिम विवाह एक सामाजिक समझौता या नागरिक समझौता है लेकिन व्यावहारिक स्तर पर भारत में मुस्लिम विवाह भी धार्मिक है।
मुसलमानों में दो प्रकार के विवाहों की व्यवस्था होती हैं।
भारतीय मुसलमानों में अन्य समुदायों की तुलना में तलाक की दर अधिक है।
पति-पत्नी के बीच वैवाहिक संबंध की तुलनात्मक स्थिरता भारतीय संस्कृति की साझी विरासत है।
भारत में मुस्लिम विवाह अरब देशों तथा दूसरे स्थानों की तुलना में ज्यादा स्थायी पाया गया है।
कर्मकाण्ड की दृष्टि से विभिन्न सम्प्रदायों तथा समूहों में अंतर पाया जाता है।
परन्तु हर मुस्लिम विवाह (निकाह) की पारिभाषिक विशेषताएँ एक समान होती हैं।
निकाह ” स्थायी विवाह “
यह विवाह यानि की निकाह आम इस्लामिक शादियों के जैसा ही होता हैं।
भारतीय मुसलमानों में ज्यादातर नियमित शादियाँ होती है।
जिसमे निकाहनामा पर वर और वधु औपचारिक घोषणा करते हैं की वे खुशी – खुशी अपनी सहमति से निकाह के लिए तैयार हुए हैं और इस तरह की शादी स्थायी निकाह कहलाती हैं।
मुताह निकाह “अस्थायी विवाह”
क्या आप जानते हैँ “मुताह निकाह” क्या होता है?
मुताह निकाह एक तरह का फौरी विवाह है इसमें पैसा देकर कुछ समय के लिए किसी महिला से “अस्थाई विवाह” कर शाररिक संबंध बनाया जा सकता है।
यह अति संवेदनशील धार्मिक भावनाओं वाले लोगों में प्रचलित एक अति विशिष्ट “विवाह” पद्धति है।
भारतीय विवाह के अंतर्गत ईसाई धर्म की शादी
1872 का भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम भारतीय ईसाइयों के कानूनी विवाह को विनियमित करने वाली भारत की संसद का एक अधिनियम है।
यह 18 जुलाई, 1872 को अधिनियमित किया गया था, यह कोचीन, मणिपुर, जम्मू और कश्मीर जैसे क्षेत्रों को छोड़कर पूरे भारत में लागू होता है।
इसके अनुसार वर और वधु दोनों में से कोई एक भी ईसाई हो तो भी शादी वैध होती हैं।
भारत के किसी भी चर्च का पादरी एक विवाह रजिस्ट्रार या विशेष अधिनियम के अनुसार जोड़ो की शादी करवा सकता हैं और शादी का प्रमाण पत्र जारी करता हैं।
यह प्रमाण पत्र विवाह के रजिस्ट्रार (जो सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है) के साथ दर्ज किया जाता है जो कि अन्य भारतीय विवाह में भी होता हैं |
भारतीय विवाह के अनुसार सिख धर्म की शादी
सिख धर्म 15वीं सदी में भारतीय हिंदू समाज संत परंपरा से निकला एक पन्थ है जिसकी शुरुआत गुरु नानक देव ने की थी।
इसमें सनातन धर्म का व्यापक प्रभाव मिलता है और इस पन्थ के अनुयायी को सिख कहा जाता है।
सिख विवाह परंपरागत रूप से जोश के साथ, संगीत और नाच गाने के मध्य उत्सवपूर्वक सम्पन्न होते हैं।
सिख विवाह को आनंद कारज कहा जाता है जिसका अर्थ है आनंद व उल्लास का कार्य।
सिख गुरुओं की सीख के अनुसार पारिवारिक जीवन बहुत महत्त्वपूर्ण होता है इसलिए विवाह को एक शुभ कार्य का दर्जा प्राप्त है।
भारतीय विवाह के अंतर्गत बौद्ध धर्म की शादी
बौद्ध धर्म में भी विवाह संस्कार होता है।
लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि यह विवाह बिना किसी आडम्बर और मंत्र के संपन्न होता हैं।
बौद्ध विवाह संस्कार में किसी धम्मचारी द्वारा वर वधु को त्रिशरण और पंचशील ग्रहण कराया जाता है।
इस विवाह में वर-वधू को प्रमाण पत्र भी दिया जाता है।
प्रतिज्ञापन के तुरंत बाद वर-वधू एक दूसरे के गले में फूलों की माला डालते हैं।
उपस्थित जनसमूह वर-वधू पर फूलों की वर्षा करता हैं और मंगल कामनाओं के साथ बिना किसी ढोंग और कर्मकांड के शादी संपन्न होती है।
भारतीय शादी में जैन धर्म का विवाह
देश की आबादी का मात्र 2 प्रतिशत आबादी वाला जैन समाज अपनी शुद्धता और संपन्नता के लिए पहचाना जाता हैं।
जैन धर्म में अहिंसा तथा रात्रि भोज के त्याग की बात प्रमुखता से होने के कारण इस धर्म में दिन के वक्त विवाह करने का विधान है।
भारतीय विवाह के अंतर्गत पारसी धर्म की शादी
भारत में पारसियों की सबसे अधिक संख्या मुंबई, दिल्ली और गुजरात में है।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1911 में पारसियों की संख्या 94,910 थी जो 1941 तक बढ़कर 1,11,791 हो गई थी लेकिन फिर इसमें गिरावट आनी शुरू हुई और 2001 में यह संख्या 69,601 तक पहुँच गई।
विवाह उनकी अनिवार्यता में अब नहीं रह गया है।
लगभग हर घर में कम से कम एक कुँवारा या कुँवारी जरूर मिल जाएगी।
परिवार का कोई सदस्य यदि अंतर्जातीय विवाह कर ले तो उसे बिरादरी से बाहर कर दिया जाता है।
पारसी समुदाय में अग्नि सबसे पवित्र तत्व है और व्यावहारिक रूप से कोई भी अनुष्ठान अग्नि के उपयोग के बिना पूरा नहीं होता है।
एक पारसी शादी भव्यता और हँसी से भरी होती है।
ज्यादातर पारसी शादियाँ शाम को सूर्यास्त के थोड़ी देर बाद होती हैं।
कोर्ट मैरिज – जहाँ हर धर्म के लोगो की शादी
भारत में कोर्ट मैरिज परंपरागत शादियों से बहुत अलग होती है।
कोर्ट मैरिज बिना किसी परंपरागत समारोह के कोर्ट में मैरिज ऑफिसर के सामने संपन्न होती है।
सभी कोर्ट मैरिज विशेष विवाह अधिनियम के तहत संपन्न होती हैं।
कोर्ट मैरिज किसी भी धर्म संप्रदाय अथवा जाति के बालिग युवक-युवती के बीच हो सकती है।
किसी विदेशी व भारतीय की भी कोर्ट मैरिज हो सकती है।
कोर्ट मैरिज में किसी तरह की कोई धार्मिक पद्धति नहीं अपनाई जाती।
इसके लिए दोनों पक्षों को सीधे ही मैरिज रजिस्ट्रार के समक्ष आवेदन करना होता है।
शादी रजिस्ट्रार के समक्ष तीन गवाहों की मौजूदगी में संपन्न होती है।
कोर्ट मैरिज की शर्तें- शादी के लिए आवेदन करने वाले युवक-युवती में से किसी का भी पहले से कोई विवाह नहीं होना चाहिए। दूल्हे की उम्र 21 और दुल्हन की 18 साल से कम नहीं होनी चाहिए और दोनों में से किसी की भी मानसिक हालत ऐसी नहीं होनी चाहिए कि वह विवाह के लिए वैध सहमति देने में अक्षम हो।
दोस्तों मैंने आपको ऊपर बताया भारतीय विवाह के प्रकार कितने हैं अब मैं आपको कुछ और पहलुओं से भी अवगत कराती हूँ।
क्या हैं विवाह – आइये जानते हैं
विवाह जिसे शादी भी कहा जाता है दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है।
जो उन दो शादी शुदा जोड़ों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है।
विवाह की परिभाषा न केवल संस्कृतियों और धर्मों के बीच बल्कि किसी भी संस्कृति और धर्म के इतिहास में भी दुनिया भर में बदलती है।
आमतौर पर यह मुख्य रूप से एक संस्था है जिसमें पारस्परिक संबंध आमतौर पर यौन सम्बन्ध स्वीकार किए जाते हैं।
विवाह मानव-समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा है।
क्या शादी करना जरुरी हैं
शादी करना जरुरी हैं क्या ? ये शब्द अक्सर भावी दूल्हा या दुल्हन के मुँह से सुनने को मिल जाता हैं।
शादी कोई जोर – जबरदस्ती का बंधन नहीं हैं की अगर आपकी इच्छा नहीं हैं तो भी आपको जबरदस्ती इसमें बांध दिया जाएँ अपितु शादी इसलिए करते हैं क्योकि हमें कोई ऐसा साथी चाहियें होता हैं जो हमारा साथ दे हमें समझे।
शादी करना जरुरी हैं या नहीं – ये फैसला समय – सोच और स्थिति पर निर्भर करता हैं ।
ये सत्य हैं की पति और पत्नी एकदूसरे के पूरक होते हैं दोनों को एक दूसरे की साथ की जरुरत होती हैं बिना साथ के ज़िंदगी के सफर में अकेले चलना एक कठिन फैसला हैं ।
वैसे आप अगर इस बारे में और ज्यादा जानना चाहते हैं तो मेरा ब्लॉग पढ़ सकते हैं जिसमे शादी करना जरुरी हैं क्या ये बताया गया हैं।
विवाह के लिए कैसा लड़का चुने
शादी के लिए कैसा लड़का चुने ? ये बहुत ही अहम सवाल हैं।
शादी जन्म – जन्मांतर का बंधन हैं जहाँ हर स्थिति में एक – दूसरे का साथ निभाने का वादा किया जाता हैं।
पति – पत्नी के सामंजस्य और प्यार को ही असल मायने में शादी कहते हैं।
अच्छी और खुशहाल शादी के लिए ये बहुत जरुरी हैं की आप अच्छा साथी चुने।
अगर आप और जानना चाहते हैं तो ये ब्लॉग जरूर पढ़े शादी के लिए कैसा लड़का चुने।
विवाह के लिए कैसी लड़की चुने
शादी के लिए कैसी लड़की चुने। ये बड़ा ही अहम सवाल हैं।
वैसे तो सभी अपने अपने लिए कुछ खास चाहते हैं और देखा जाये तो शादी कोई गुड़िया-गुड्डे का खेल तो हैं नहीं।
शादी के लिए लड़की की सुंदरता से ज्यादा उसके स्वभाव को तवज्जो दीजिये।
शादी उस लड़की से करे जो आपसे प्रेम करती हो जो आपकी सुंदरता से ज्यादा आपका स्वभाव पसंद करती हो।
आज के मैंने इस ब्लॉग में आप सभी को भारतीय विवाह के प्रकार के बारे में बताया। भारतीय धर्म के अंतर्गत होनेवाली शादियों के बारे में बताया और कुछ जरुरी बातों से भी अवगत कराया। दोस्तों आपको ये ब्लॉग कैसा लगा ये जरूर बताना और यदि कोई सवाल हो तो कमेंट सेक्शन में जरूर पूछिए मैं आपके सवालों का जवाब जरूर दूंगी तो मिलते हैं अगले ब्लॉग पर।

नमस्ते। मेरा नाम दिव्या अरविंद पटेल है। मैं दिव्या दैनिका की संस्थापिका और मुख्य सम्पादिका हूँ। मेरा ब्लॉग मानवीय रिश्तों, विवाहित ज़िन्दगी और लोगो की अंदरूनी पहचान को उभारने के लिए समर्पित है । दिव्या दैनिका के हर लेख के पीछे मेरी खुद की ज़िन्दगी का अनुभव छुपा है।